एक समय था जब लोग बाहर घूमने जाते थे अपने आपको तरोताज़ा करने और नए अनुभवों को एकत्रित करने, आजकल जाते हैं तस्वीरें लेने. अगला क़दम होता है तस्वीरों को साझा करके लोगों की वाहवाही लूटना.
यही हाल विशेष दिवसों जैसे कि जन्मदिन, मदर्स डे, फादर्स डे, शादी की रजत जयंती, स्वर्ण जयंती का है. इन अवसरों का आनंद लेने की जगह, ध्यान इस बात पर होता है कि तस्वीरें खींचकर उनका प्रदर्शन किया जाए.
दरअसल समस्या तस्वीरें लेने में नहीं है क्योंकि आप अपने जीवन के विशेष क्षणों को तस्वीरों में सहेजना चाहते हैं. समस्या है इस ढोंग और दिखावे की लत में जहाँ तस्वीरों का प्रदर्शन करके लोगों को यह जताने की कोशिश की जाती है कि आप कितने आनंद में जी रहे हैं. किसी अवसर की एक दो तस्वीरें साझा करना भी अच्छा लगता है. लेकिन दर्जनों तस्वीरें डालना, और उन पर लाइक्स और कॉमेंट्स की लालसा रखना, क्या एक मानसिक बीमारी नहीं है?